शनिवार, 13 अगस्त 2022

परिचय


इष्टदेव - श्री परमहंस भगवान जी ।

मार्गदर्शक गुरूदेव - ब्रह्मलीन स्वामी हर श्रद्धानंद जी महाराज । 

भैया भाभी - कान्हा भैया राधा मैया । 

 पिता - ब्रह्मलीन महात्मा अचल संतोषानंद जी । 

 मां - बाई सत धर्मानंद जी ( लाज बाई जी गुरूग्राम कुटिया वाले ) । 

 जन्म - 6 अप्रैल 1973 रेवाडी ( हरियाणा ) । 

 संन्यास - श्री पंचम पादशाही भगवान जी ने 
 दिंनाक - 18 जनवरी 2016 श्री प्रयागधाम में 
 साधु चोला प्रदान कर 
 नाम - गुरूमुख आजाद ( दीपक भैया ) से बदल कर 
 निर्भय अनूपानंद ( आजाद स्वामीॐ ) किया । 

 निवास - श्री आनंदपुर सत्संग आश्रम 
 48/18 लक्ष्मी गार्डन, निकट ग्रामीण बैंक 
 गुरूग्राम-122001 

 फ़ोन 9891723975

 WhatsApp - 8010307740

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

सुमिरन रूहानी खुराक

*🙏जयसच्चिदानंद दयालु जी🙏*

सुमिरन के संदर्भ में है यह उपदेश और 
यह उपदेश तब सार्थक होगा जब आप 
इसको अमल में लाएंगे। कोई भी उपदेश, 
पुस्तक या प्रेरक संत आपके जीवन में 
बदलाव नहीं ला सकता जब तक आप 
स्वयं बदलना न चाहें।

सब से पहले तो आज ‌इस उपदेश को 
ग्रहण करते समय दिल से इस ख्याल को 
निकाल दीजिएगा कि मैं सब जानता हूं, 
पहले सुन रक्खी है ये बातें। 

जानना नहीं आज मानना है
तो आज १ दिन में ही महान
परिवर्तन 100% संभव है। 

मानवीय स्वभाव है कि सब
कर्म फल की इच्छा से प्रेरित
होकर करता है। यही नियम
वह सुमिरन पर भी लागू करता
है। कि सुमिरन करने से कुंडलिनी शक्ति 
जागृत हो जाएगी, तीसरा नेत्र खुल जाएगा, 
सफलताएं मिलने लगेंगी इत्यादि। 

आज ये विचार दिल में धारण
करलें कि जैसे शरीर को स्वस्थ रखने 
के लिए भोजन अनिवार्य है वैसे ही आत्मिक 
स्वास्थ्य हेतु सुमिरन अध्यात्मिक-आहार है। 
बालक की प्रवृत्तियां फलेच्छा रहित होती है 
सो आनंदित रहता है। बड़े होने पर सारा ध्यान 
फल पर केन्द्रित होने के कारण सारा आनंद खो 
जाता है नहीं तो आप स्वयं आनंदस्वरुप हैं।  

एक बार मेरे अभिन्न बंधु ने 
मुझ से कहा भोजन करते
समय नाकारात्मक विचार 
कि ‘अमुक आहार मेरे स्वास्थ्य 
पर गलत प्रभाव डालेगा, निश्चित
हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ने हेतु
बीजकार्य करता है। जबकि 
आनंदपूर्वक किया भोजन 
स्वास्थ वर्धक होता है। 

सुमिरन भी अगर इष्टदेव के प्रेम में 
डूबकर सुमिरन को दर्शनध्यान बनाकर 
किया जाए। सारे द्वंदों को त्याग 
प्रेममय रसमय बनाकर 
सुमिरन का नित्य आनंद लेना है।

कुछ दिन पहले एक भगत ने पूछा कि 
आरती पूजा सेवा सत्संग सुमिरन और ध्यान। 

सुमिरन और ध्यान चौथा-पांचवां नियम 
तो एक ही हो गए। 

समाधान:-
दोहे में जो ध्यान कहा है वह है ‘दर्शनध्यान‘ पांचवा नियम। 
पंचम पादशाही भगवान जी द्वारा प्रदान 
पंचम नियम:- दर्शनध्यान, 
श्रद्धा (प्रेम) सहित पालन करे,
निश्चय हो कल्यान। 


निर्भय अनूपानंद (आजाद स्वामीॐ)
 श्री आनंदपुर सत्संग आश्रम 
48/18 लक्ष्मी गार्डन,
निकट सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक      
गुरूग्राम-122001 फ़ोन 9891723975 

शुक्रवार, 12 मई 2017

हम भारतवासी कितना

भी पश्चिम के रंग के

प्रभाव में स्वयम् को

आधुनिक प्रदर्शित करें,

पर हमारे मूल स्वभाव में

धर्म रचा बसा है।

ऐसे ही आजादस्वामी जिसकी

माँ ने बोलजयकारा रूपी

लोरी गायन कर परिवरिश

की, जो महात्मा जन की

गोद में पला, उसके रोमरोम

में श्रीपरमहंसअद्वैतमत

के संस्कार बसे हुए हैं।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

आजाद स्वामी व्यक्तिगत नाम नहीं- १ प्रतीक - सबकुछ स्वतंत्र सत्ता ईश्वर कर्ता

बाल्यकाल से ही स्वामी विवेकानंद जी 

और स्वामी रामतीर्थ जी 'आजाद'

के प्रेरणास्त्रोत रहें हैं।

विवेकानंद सिखायी उदारता- कुंए के मेढक न बनों। 

मेरा परिवार, मेरा सम्प्रदाय से बाहर होकर,  

वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का विकास !

 रामतीर्थ सिखाया वेदांत- मैंने किया न

कहकर राम ने किया कहते।

'आजादस्वामीॐ' भी इसी

प्रेरणा से प्रकट हुआ। 

हम सब सेवक हैं, सब किसी न किसी

सेवा कर रहे हैं । 

सनातन धर्म है सेवा - हमारा मूल स्वभाव

है सेवा ।


हिंदू -मुस्लिम- सिख - ईसाई आदि 

सम्प्रदाय हैं , परिवर्तित हो सकते

हिंदु मुसलमान बन सकता, 

सिख  ईसाई बन सकता पर 

जैसे पानी का धर्म स्वभाव है शीतलता

मानव का धर्म है सेवा

जो परिवर्तित नहीं हो सकता

जैसे पहले कहा-

हम सब सेवक हैं, सब किसी न किसी

सेवा कर रहे हैं । 


'आजादस्वामीॐ' तो केवल परमात्मा ही 

हो सकते हैं। 


रामतीर्थ से प्रेरणा लेकर जैसे वो कहते

राम ने पुस्तक पढी या राम ने ये किया


वैसे ही निर्भय अनूपानंद 

'आजादस्वामीॐ' प्रयोग करता है। 

तो इसको अन्यथा न लेकर आजाद

की भावना को आप समझें, इसलिए

स्पष्ट किया।      

🌸जयसच्चिदानंद दयालुजी🌸




शनिवार, 26 मई 2012

azadswamig@gmail.com

सौभाग्यशाली गुरूमुखों- सप्रेम जयसच्चिदानंद।
आज मैं अपना कर्तव्य जानएक अत्यंत 
महत्वपूर्ण विषय
(श्री दरबार में प्रशाद वितरण के समय 
बड़ती अव्यवस्था) पर बंधुजनों से
चर्चा करने जा रहा हूं। इसमें कोई संदेह
 नहीं कि हमारा दरबार भक्ति-
प्रमार्थ का श्रेष्ठ-सच्चा दरबार है। 
परंतु साधारण व्यक्ति के पास
प्रमार्थ को देखनें वाली दृष्टि नहीं होती, 
वह तो बाहरी व्यवहार को ही देखता है।
       
 प्रशाद वितरण के समय बड़ती 
अव्यवस्था श्री दरबार की शान के
अनुरूप नहीं है। मेरा ये विन्रम निवेदन
 है कि प्रशाद वितरण के समय
अनुशासन- संयम में रहें। केवल 
संतो-महात्माओं का ही नहीं वरन् प्रत्येक
गुरूमुख का कर्तव्य है कि अपने- अपने 
वर्तुल में ऐसी वैचारिक क्रांति
फैलाएं कि वास्तनविक प्रशाद तो
 दयासागर श्री सद्गुरूदेवमहाराज जी की
प्रसन्नता ही है। शिक्षित बंधुओं से विशेष 
आशा करता हूं कि वे अपने
सम्पर्क वर्तुल में ऐसा दिव्य माहौल
 बनाऐंगे कि नवीन भक्त जब प्रथम
बार श्री दशनों को हमारे साथ जाएं
 तो उनके मुख से अनायास धन्य-धन्य 
के बोल सुनाई पड़ें।

         कहते हैं कि तीर्थ पर किये
 गए पाप- पुण्य दोनों ही का फल अनंत
गुणा मिलता है तो हमें पुण्य एकत्र करके
 भक्तिधन को ही पाना चाहिये यही
हमारे महापंभु जी की मौज है। श्री दरबार 
में हम सादे वस्त्र धारण करें
और वहां हमारा एक-एक पल अध्यात्मिक 
प्रगति हेतु नियाजित होना चाहिये। एक
और बिंदु पर आपका ध्यान दिलाना चाहूंगा 
कि जैसे भौतिक धन बड़ने पर चोर-
डाकुओं से सर्तक रहना पड़ता है ऐसे ही 
भक्तिधन प्राप्त होने पर काम-
क्रोधदि डाकुओं से सदा सावधान रहना 
चाहिये। मेरे एक मित्र कहते हैं- ‘
‘कि मछली एक- शिकारी अनेक’’। 
काम से बचा तो कोध्र में फसेंगा उससे 
भी बच गया तो अंहकार तो दबोच ही लेता 
है। मैं भी अनेक बार लुट चुका हूं, परंतु
महाप्रभु की कृपा ही बार-बार सम्भाल
 लेती है।
कोमल चित अति दीनदयाला- 
कारण बिन रघुनाथ कृपाला।
जब वो हम पर इतने दयाल हैं 
फिर हमारा भी तो कुछ उत्तपरदायित्व 
बनता है कि हमारे कर्म दरबार की 
ऊंची-सुच्ची शान के अनुरूप ही हों।
तो आज अभी से हम संकल्प करें
 कि चाहे कुछ भी हो जाये प्रशाद के 
समय खड़ा नहीं होना और भक्तिधन 
से मालोंमाल होकर महाप्रभुजी की 
प्रसन्नता प्राप्त करनी है।

बंधुओं मैं तो स्वंयं ही अवगुणों की
 खान हूं अगर मेरी बातें अच्छी न लगी
हों तो क्षमा चाहता हूं। 
 =Ξ☆जयसच्चिदानंद दयालु जी☆Ξ=

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48/18 laxmi garden, Near Gurgaon Gramin Bank
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