शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

सुमिरन रूहानी खुराक

*🙏जयसच्चिदानंद दयालु जी🙏*

सुमिरन के संदर्भ में है यह उपदेश और 
यह उपदेश तब सार्थक होगा जब आप 
इसको अमल में लाएंगे। कोई भी उपदेश, 
पुस्तक या प्रेरक संत आपके जीवन में 
बदलाव नहीं ला सकता जब तक आप 
स्वयं बदलना न चाहें।

सब से पहले तो आज ‌इस उपदेश को 
ग्रहण करते समय दिल से इस ख्याल को 
निकाल दीजिएगा कि मैं सब जानता हूं, 
पहले सुन रक्खी है ये बातें। 

जानना नहीं आज मानना है
तो आज १ दिन में ही महान
परिवर्तन 100% संभव है। 

मानवीय स्वभाव है कि सब
कर्म फल की इच्छा से प्रेरित
होकर करता है। यही नियम
वह सुमिरन पर भी लागू करता
है। कि सुमिरन करने से कुंडलिनी शक्ति 
जागृत हो जाएगी, तीसरा नेत्र खुल जाएगा, 
सफलताएं मिलने लगेंगी इत्यादि। 

आज ये विचार दिल में धारण
करलें कि जैसे शरीर को स्वस्थ रखने 
के लिए भोजन अनिवार्य है वैसे ही आत्मिक 
स्वास्थ्य हेतु सुमिरन अध्यात्मिक-आहार है। 
बालक की प्रवृत्तियां फलेच्छा रहित होती है 
सो आनंदित रहता है। बड़े होने पर सारा ध्यान 
फल पर केन्द्रित होने के कारण सारा आनंद खो 
जाता है नहीं तो आप स्वयं आनंदस्वरुप हैं।  

एक बार मेरे अभिन्न बंधु ने 
मुझ से कहा भोजन करते
समय नाकारात्मक विचार 
कि ‘अमुक आहार मेरे स्वास्थ्य 
पर गलत प्रभाव डालेगा, निश्चित
हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ने हेतु
बीजकार्य करता है। जबकि 
आनंदपूर्वक किया भोजन 
स्वास्थ वर्धक होता है। 

सुमिरन भी अगर इष्टदेव के प्रेम में 
डूबकर सुमिरन को दर्शनध्यान बनाकर 
किया जाए। सारे द्वंदों को त्याग 
प्रेममय रसमय बनाकर 
सुमिरन का नित्य आनंद लेना है।

कुछ दिन पहले एक भगत ने पूछा कि 
आरती पूजा सेवा सत्संग सुमिरन और ध्यान। 

सुमिरन और ध्यान चौथा-पांचवां नियम 
तो एक ही हो गए। 

समाधान:-
दोहे में जो ध्यान कहा है वह है ‘दर्शनध्यान‘ पांचवा नियम। 
पंचम पादशाही भगवान जी द्वारा प्रदान 
पंचम नियम:- दर्शनध्यान, 
श्रद्धा (प्रेम) सहित पालन करे,
निश्चय हो कल्यान। 


निर्भय अनूपानंद (आजाद स्वामीॐ)
 श्री आनंदपुर सत्संग आश्रम 
48/18 लक्ष्मी गार्डन,
निकट सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक      
गुरूग्राम-122001 फ़ोन 9891723975